दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। मैंने जब खोला तो सामने अल्ताफ खड़ा था। उसने अपनी कमीज से कुछ निकाला वो अख़बार में लपेटा हुआ था। उसने वो समान मुझे थमाते हुए कहा '' ये आखरी पैगाम '' मैंने उसकी आँखों में देखा उसकी आंखें लाल हो रखी थी। शायद ये रंग था दर्द का। तभी आंसुओ की शकल वो बाहार निकला। जो प्यार को बयां कर रहे थे। और उस दोस्ती को भी जो अमर हो चुकी थी। उसके जाने के बाद मैंने दरवाजा बंद कर लिआ। तभी अम्मी बुटीक से आई और डर से सहमते हुए पूछा '' कौन था " ''डरो मत अम्मी अल्ताफ था '' मैंने कहा। '' ये क्या है '' अम्मी ने पूछा। मैंने खोलकर देखा तो उसमे एक डायरी थी। आहिल की डायरी। ये वही डायरी है जिसमे वो अक्सर अपने सबसे अच्छे और बुरे पल लिखता था। बस ये डायरी तो थी जो उसे सबसे अच्छी तरह से जानती थी। जिसे वो अपनी दिल की बात बताया करता था। ये उसके लिए सिर्फ डायरी नहीं थी उसकी आशना थी। वो कहता था कि अगर किसी को जानना है तो उसकी डायरी को पड़ो। कुछ ज़ज़्बात ऐसे होते है जो सबको बताए नहीं जाते पर कही तो बयां ...
bura waqt dushman nahi yehi to sacha mitra hai yehi batae kya galat sahi logo ka kya charitra hai btae ki sirf mehnat se ho kabool sari duae sapno ka ghar naa netra hai jab bikhar kar simat te hai hum fir se tabi bunta buland charitra hai
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